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2024
मथुरा
दूरदर्शी आवाज़
जयगुरुदेव
खुश करना है, देवी-देवता सब कोई शाकाहारी हो ।


मुर्दा खाकर मन्दिर जाते, कैसे धर्म पुजारी हो । खुश करना है देवी-देवता, सब कोई शाकाहारी हो ।।
हिंसा से रहे दूर हमेशा, “हिन्दू” की परिभाषा है । दयावान बन, जुल्म न ढाओ, सब में प्रभु का वासा है ।। खुश.. 1 अदले-बदले देने पड़ते, इस विधान को भूलो मत। चाहे जितनी लाचारी हो, दानव-धर्म कबूलो मत।। तामस भोजन क्यों करना, जब अन्न दूध तरकारी हो ।।

  • खुश.. माँस डाल दे मन्दिर, मस्जिद में, फौरन ही लड़ते हो । मानव-तन मन्दिर दूषित कर क्यों झंझट में पड़ते हो ।। जड़ पूजा की खातिर, आखिर तुम कितने तकरारी हो ।। खुश.. 3 चलते-फिरते चेतन मन्दिर, में मुर्दे दफनाता क्यों महा अपावन कचरा भरकर, कब्रिस्तान बनाता क्यों जानबूझ कर विपदा लाती, शोलों की चिनगारी हो ।। खुश.. 4
    हर्गिज माफ नहीं हो सकती, गाफिल ! गलती हत्या की । लेन देन की अटल नीति है, रीति काल के बगिया की ।। उस पूजा से क्या मतलब ? जब बुद्धी ही हत्यारी हो ।। खुश.. 5 पूजनीय पंकज स्वामी जी, जयगुरुदेव सन्देशा ले । आये कहने शाकाहारी बन बन जाओ दुनिया वाले ।। रस्ता तभी सुझाई देगा, रात जहाँ उजियारी हो ।। खुश..6
    रोज नहाकर साफ सुथरे होकर जाते मन्दिर में । माँस शराब को डाल रहे क्यों ? चेतन मन्दिर अन्दर में ।। मालिक जब नाराज होयगा, जीवन पथ अँधियारी हो ।। खुश..7 हम सनातनी कट्टर हिन्दू, पक्का दावा करते हैं । राम, कृष्ण का कहा न माने, फकत दिखावा करते हैं ।। लटक रही जब तेरे सिर पर, कर्म कटार दुधारी हो ।। खुश.. 8
    पूजा हो स्वीकार तभी, जब शुद्ध सात्विक भोजन हो । पशु प्रवृत्ति भोजन करने से, पूजा बिना प्रयोजन हो ।। चंचल चित्त बनाने वाला, भोजन ना बलकारी हो ।। खुश.. 9 जिस शराब को पी लेने से, नजरों की पहचान गई। अच्छे बुरे उचित अनुचित का, हो सकता है ज्ञान नहीं ।। जहाँ शराबों का प्रचलन हो, जनता वहाँ भिखारी हो ।। खुश.. 10 संयम, धीरज, सहनशीलता, आती शाकाहार से ।
    चित्त चंचल, संघर्ष क्रोध का, कारण माँसाहार से ।। “बाबू” दोनों दुर्व्यसनों से, भारी मारा-मारी हो ।। खुश.. 11

परमात्मा मनुष्य शरीर में ही मिल सकता है, और शरीरों में नहीं।


परम पूज्य स्वामी (बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की दया-मेहर है। आशा है कि अपने परिवार, बाल-बच्चों सहित प्रेम से जीवन का अनमोल समय बिताते हुए परमार्थ की भी चिन्ता करते होंगे। शाकाहार, नशामुक्ति का प्रचार गुरु महाराज के आदेशानुसार नियमित रूप से । करते हुए उनकी अमरवाणियों को जन-जन तक पहुँचाने का अभियान चलाते रहना है। । यह प्रेमियों की शारीरिक सेवा है। अपना परमार्थ आदेश पालन में छिपा हुआ है। परम पूज्य स्वामी जी (बाबा जयगुरुदेव जी महाराज बराबर जोर देकर कहते थे कि गुरु-आज्ञा का पालन करने का नाम भक्ति है। गुरु तभी खुश होंगे, जब उनका कहना प्रेमी मानेंगे, उनके आदेशानुसार काम करेंगे। महात्मा कभी नाराज नहीं होते। वह तो दयालु होते हैं। दया करने 1 के लिए ही मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं। उनका काम सोई हुई जीवात्माओं को जगाना है। काल की कठिन कारा में दुक्ख भोगती, कष्ट उठाती सुरतों को जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त करना है। वह समाज की बिगड़ी व्यवस्था को भी ठीक करना चाहते हैं। समाज के विचारशील लोगों को समझाते हैं कि घर-परिवार, कुल-कुटुम्ब, समाज, देश-दुनिया में शान्ति कैसे मिलेगी ? शान्ति की खोज तो सबको है, लेकिन मिलती किसको है? जो सन्तों-महात्माओं की खोज करके उनके बताये मार्ग पर चलकर अपनी रहनी-गहनी सुधार लेते हैं। बिगड़े खान-पान को ठीक करके सन्तों के बताये मार्ग से भजन कर लेते हैं। अपनी सोई हुई जीवात्मा को जगाकर अपने घर चले चलते हैं।
मेरे गुरु महाराज परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने जिस अध्यात्मवाद को सर्व सुलभ और सर्व अधिकारी बनाया, उसका फैलाव करना हम प्रेमियों का परम कर्तव्य है। उनके आदेशानुसार नामदान, की प्रक्रिया को सरल करके बताया जा रहा है। अधिक से अधिक लोग गुरु की शरण में पहुँचें और भजन करके अपना कल्याण करें। इसके लिए प्रेरित करना, अवसर दिलाना हमारी भक्ति होगी। गुरु-कृपा सब पर बरसे, यही कामना है।

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