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1 जून 2024
शनिवार, मथुरा
जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था, मथुरा – 281004 (उ.प्र.)
जयगुरुदेव दूरदर्शी आवाज़
संपादकीय :
भजन करो भगवान का, प्यारे तीनों
जून
देव दुर्लभ मानव तन की प्राप्ति वक्त का सबसे बड़ा वरदान है। कहा गया है कि तैंतीस करोड़ देवता और छप्पन करोड़ देवी इस मानव शरीर को पाने के लिए रात-दिन उस प्रभु मालिक से प्रार्थना करते हैं अर्थात भीख माँगते हैं कि हमको एक बार मानव शरीर में पैदा कर देते तो हम अपना काम बना लेते। आत्मा का कल्याण कर लेते। परन्तु | यथार्थ यह है कि याचना करने के बावजूद देवी-देवताओं को यह मानव शरीर नहीं मिल पाता। इसीलिए इस अमोलक देह को देव दुर्लभ शरीर या देव नारायणी देह कहा जाता है
देवी-देवताओं को इस शरीर को पाने की इतनी बड़ी व्यग्रता क्यों होती है ? इसका क्या कारण है ? सन्तों-महात्माओं [ ने इसके बारे में बताया कि चार खान चौरासी लाख योनियों के सभी, शरीरों में नौ दरवाजे बाहर की तरफ खुलते हैं। वह । द्वार कौन-कौन से हैं। दो आँख, दो कान, दो नाक, एक मुँह, यह ऊपर की ओर स्थित हैं। इनके अलावा दो द्वार नीचे की ॥ तरफ खुलते हैं। मल द्वार और मूत्र द्वार। बताया यह गया है कि इन नौ दरवाजों से शरीर की गन्दगी (अपशिष्ट) बाहर निकलते हैं। यह नौ दरवाजे सभी छोटे-छोटे जीव-जन्तुओं, कीड़े-मकोड़ों, पशु-पक्षियों में मौजूद हैं। इससे कोई वंचित नहीं हैं। तिरासी लाख निन्यानबे हजार नौ सौ निन्यानबे योनियों में सबमें समान रूप से यह संयोग प्राप्त है।
मानव शरीर में भी यह नौ दरवाजे मिलते हैं। इन नौ द्वारों के अलावा मनुष्य योनि में एक और दरवाजा है, जिसको दसवाँ दरवाजा, मुक्ति द्वार, मोक्ष द्वार, दसवाँ द्वार कहा जाता है। यह बाहर नहीं, अन्दर खुलता है। इसी दरवाजे ॥ का इशारा भगवान राम ने अपने दरबार में बुलाई गई सार्वजनिक सभा में सबको बताया था। कहा था कि-” बड़े भाग्य मानुस तन पावा, सुर दुर्लभ सद्ग्रथनि गावा।” तात्पर्य यह है कि यह अनमोल मानव शरीर बड़े सौभाग्य से प्राप्त ॥ हुआ है। यह देवी-देवताओं को दुर्लभ है। ऐसा सभी धर्मग्रन्थ बताते हैं। आगे कहा किः साधनं धाम मोक्ष कर द्वारा, पाय न जे परलोक सँवारा।” यह शरीर अपने धाम, अपने घर जाने का साधन है, सवारी है, इसी में मुक्ति का, मोक्ष ॥ का दरवाजा है। इस अनोखे संयोग को पाकर जो अपना परलोक नहीं सँवारते, उनकी क्या गति होती है? बताया है। कि- सो परत्र दुःख पावहिं, सिर धुनि-धुनि पछिताहिं, कालहिं, कर्महिं ईश्वरहिं मिथ्या दोस लगाहिं।” ऐसे लोग !
इस लोक में और यहाँ से समय पूरा होने पर परलोक जाने पर वहाँ भी दुःख पाते हैं। असहनीय पीड़ा झेलते हैं। सिर
॥ धुन-धुन कर, खोपड़ी पीट-पीटकर पछताते हैं। समय को, भगवान को, अपने बुरे कर्मों को झूठा दोष लगाते हैं।
भगवान राम ने अपने नगरवासियों, पुरवासियों को समझाते हुए कहा-“देह धरे का यह फल भाई, भजिय । प्रभू सब काम बिहाई।।” उन्होंने कहा कि यह शरीर भगवान का भजन करने के लिए मिला है। सभी कामनाओं, इच्छाओं के त्याग कर भगवान का भजन कर लेना चाहिए। माँ के गर्भ में सभी लोग यही वादा करके आये हैं कि हम | आपका भजन करेंगे।” अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती, सब तजि भजन करब दिन राती । । “
. भजन का मार्ग सन्त- सतगुरु बतायेंगे। ऐसे मर्मभेदी गुरु की खोज करो और सुबह-शाम, चौबीस घण्टे में जब अवसर मिले, भजन करके अपना काम बना लो। सुबह, दोपहर, शाम तीनों जून भजन में लगो। भजन ही जीवन का सार । इसीलिए महापुरुषों ने जोर देकर कहा कि-“भजन करौ भगवान का, प्यारे तीनों जून।”

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