• जयगुरुदेव x दूरदर्शी आवाज़
    कर्म करने ( साधन करने) में तो उनकी जान सी निकलती है।
    साधन में बैठना और मन, बुद्धि, चित्त और इन्द्रियों को काबू में तीसरे तिल पर रोकना, यह साधन ! प्रारम्भ की होती है । परन्तु साधकों के लिए यह साधना – एक प्रकार की कठिन होती है। साधकों को समझना चाहिए कि ज्यादा परिश्रम से ज्यादा सुख प्राप्त होता
    है । जो लोग साधन में तरक्की नहीं कर पाते हैं, । उसका मूल कारण यही है कि उनके क्रियामाण कर्म अधिक से ज्यादा गन्दे हैं। प्रायश्चित् उनके सिर पर है। | जब तक उनके प्रायश्चित् कर्म नहीं दूर होंगे, तब तक हर्गिज परमार्थ की तरक्की नहीं होगी। I रूम साहब कहते हैं किं जिस दिल में रहम नहीं है, वह दिल पत्थर है और पत्थर दिल में दया नहीं उपजती है।
    गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं दयावान् का ॥ हृदय द्रवित होता है। जरा सा दुःख किसी को हुआ कि फौरन पिघल जाता है; जैसे गर्मी पाकर मक्खन पिघल | जाता है। कबीर साहब कहते हैं कि साधु को ऐसा होना चाहिए कि जिसके हृदय में दया हो और जो दूसरों की पीड़ा को हर ले ।
    दादू जी महाराज कहते हैं साधू का हृदय छुई-मुई होता है, गन्दा असर पहुँचते ही मुरझा जाता है। परन्तु । निर्मल वायु से सदा छुई-मुई का पेड़ हिलता रहता है, कभी नहीं मुरझाता है। इन्द्रियाँ विकारों से हटें, तब मन रुकेगा लोग कहेंगे कि पत्थर दिल में भी दया होती है। पत्थर दिल में दया ऐसी होती है जैसे वक्त पर पत्थर | मजबूरी में किसी के काम आता है, पर सख्त चीज में काम आता है।
    जो रहस्य परमात्मा का है, वह तो बहुत काल के बाद आता है; क्योंकि जब साधन करने वाला गुरु के पास रहेगा और उनकी हिदायत के अनुसार अपने भावों को ठीक करेगा, तब वह किसी काल में जाकर समझपाता है।
    बहुत से लोग महात्माओं के पास आते हैं, सत्संग में रहकर जब कुछ समझ पैदा हुई तो एक बारगी कहना प्रारम्भ करते हैं कि हमारे ऊपर दया कीजिए और इन्द्रिय दमन का उपदेश गुरु ने दिया है, उसका तो लोगों को विश्वास नहीं है कि इसके रोकने की भी जरूरत नहीं । है। ऐसा लोग समझते हैं कि इसकी जरूरत नहीं है। और हमारे अन्दर आत्मज्ञान पैदा हो जावे ।
    जब तक इन्द्रियाँ चंचलता नहीं त्यागेंगी, तब तक आत्म-संशुद्धि हरगिज नहीं होगी और न आत्म-साक्षात्कार होगा और न शब्द खुलेगा। जब । इन्द्रियाँ विकारों की तरफ से हट जायेंगी, तभी मन शब्द अर्थात् अपने बिन्दु पर ठहरेगी।
    -स्वामीजी (बाबा जयगुरुदेव)
  • नकल में मारे जाओगे
    तुम मनमुखी होकर, अज्ञानता में, महत्वाकांक्षा के शिकार होकर बाबा जी की नकल करते हो। उसी ॥ में मारे जाओगे। जितने भी लोग बाबा जी की नकल करेंगे, सब मारे जायेंगे, क्योंकि वे बाबा जी की बात को तो समझते नहीं; बस नकल करते हैं। नकल की अकल कभी सफल नहीं होती।
    दिल्ली में एक आदमी आया, उसने प्रश्न किया कि हमारे अन्दर एक अवगुण आ गया है कि मैं शराब । पीता हूँ। मैंने उससे पूछा कि ऐसा अवगुण क्यों आया ? कहता है संगदोष से। उसे प्रेम से समझा दिया तो संगदोष से ही शराब छूट भी जावेगी।
    कुछ दिन बाद वह आदमी मिला तो कहता है कि हमारी शराब संगदोष से छूट गई है। आपने सरल उपाय बता दिया। यह सत्य है कि मनुष्य संग के दोष से कुपथ के रास्ते पर चला जाता है और सुपथ से सुपथ पर चला जाता है। जितने गुण-अवगुण हैं; संगदोष से । मनुष्य सीख जाता है। – क्रमशः अगले अंक में
    अवतारी शक्तियाँ कर्मों की सजा देती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Author

jaygurudevashram@gmail.com

Related Posts

यहाँ सर दे के होते हैं सजदे, आशिकी इतनी सस्ती नहीं है ।।

अच्छे संस्कार का असरकुछ समय पहले की बात है। एक माता-पिता ने | अपनी कन्या के लिए बड़ी मेहनत करके एक वर...

Read out all

पहले यह सुरत-शब्द योग (नामयोग) मार्ग बिल्कुल गुप्त था। नामदान पाने के लिए कठिन सेवा – कसौटियों से गुजरना पड़ता था ।

श्री देवदत्त जी! आपने पूछा है कि जो लोग सेवाओं को लेकर अपने निजी काम में खर्च कर लेते हैं, । उसका...

Read out all

ये मुहब्बत की है बात जाहिद, बन्दगी तेरे वश की नहीं है।

में परिपक्व किए जाते थे। दूसरे जन्म के आखीर में नामदान मिलता था, तीसरे जन्म में मुक्ति पद तक की साधना कराई...

Read out all

आवागमन का कोई बन्धन नहीं था। समय पूरा हुआ तो ध्यान विधि से। उस सत्तपुरुष के पास वापस चले जाते थे।

यह मृत्युलोक जन्म-मरण का देश है । यहाँ I जिसका जन्म हुआ है, उसे एक न एक दिन मरना जरूर है। जो...

Read out all

कलियुग केवल हरिगुन गाहा, गावत नर पावहिं भव थाहा ।।

सोचा कि यदि इसी तरह सब सुरतें जागकर अपने देश वापस लौट गईं तो एक दिन हमारा देश पूरी -तरह खाली हो...

Read out all

आम जनमानस में चर्चा के विषय होते हैं, जिनसे उनकी दया-कृपा का आभास मिलता है।

बात अयोध्या के सरयू तट पर आयोजित प्रथम सतयुग आगवन साकेत महायज्ञ के समय की है। सरयू की बालू से नदी का...

Read out all