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- महाप्रभ नामक विख्यात नर्क बहुत ऊँचा है। महाप्रभ में चमकते हुए शूल नुकीले गड़े होते हैं। जो लोग पति और पत्नी में भेद डालकर उनके जीवन को नष्ट कर देते हैं, उन्हें शूल से छेदा जाता है। महान् दुःख उन शूलों के छेदने से होता है। जयन्ती नामक नर्क
जयन्ती नामक अत्यन्त घोर नर्क है। जयन्ती नामक नर्क में लोहे का बहुत विशाल पहाड़ के ॥ सदृश चट्टान पड़ा रहता है। पराई स्त्रियों के साथ सम्भोग करने वाले मनुष्य उसी चट्टानों के नीचे I जलाये जाते हैं, जिसमें गर्मी इतनी होती है जैसे गर्म बालू में चना डाल दिया और तुरन्त खिल जाता है। इसी तरह जीव भूने जाते हैं। शालमाल नामक एक नर्क है। वहाँ शालमाल का आलिंगन करना पड़ता है। उसी समय पीड़ा सी हो उठती है। जो लोग सदा झूठ बोलते और दूसरों के ! मर्म को कष्ट पहुँचाने वाली कटु वाणी मुँह से निकालते हैं। मृत्यु के समय उनकी जिह्वा यमदूतों द्वारा काट । ली जाती है। महारौरव नामक नर्क जो आसक्ति के साथ कटाक्ष पूर्वक पराई स्त्रियों की ओर देखते हैं, यमराज के दूत मार कर उनकी आँखें फोड़ देते हैं। जो माता – बहिन, कन्या पुत्र वधू के साथ समागम तथा स्त्री, बालक, और
बूढ़ों की हत्या करते हैं, उनकी भी यही दशा होती ! है। वे चौदह इन्द्रों की आयु पर्यन्त नर्क यातनाओं में पड़े रहते हैं।
महारौरव नामक नर्क ज्वालाओं से परिपूर्ण तथा अत्यन्त भयंकर है। महारौरव नर्क का विस्तार चौदह योजन है, जो मूढ़ नगर, घर अथवा खेत में आग लगाते हैं, वे एक कल्प तक उसमें पकाये जाते हैं। यमराज के दूत चोरों को उसी में डालकर शूल, शक्ति, गदा और खड़ग से उन्हें तीन सौ कल्पों तक उसी में पीटते रहते हैं। महातामिस्र नामक नर्क
महातामिस्र नामक नर्क और भी दुःखदायी है। उसका विस्तार तामिस्र की अपेक्षा दूना है। उसमें जोंकें भरी हुई हैं और निरन्तर अन्धकार छाया रहता है, जो माता-पिता और मित्र की हत्या करने वाले तथा विश्वासघाती हैं, वे जब तक यह पृथ्वी रहती, तब तक उनमें पड़े रहते हैं और जोंकें निरन्तर उनका रक्त चूसती हैं।
असिपत्र वन नामक नर्क तो बहुत कष्ट ! देने वाला नर्क है। असिपत्र वन नर्क का विस्तार दस हजार योजन है। उसमें अग्नि के समान प्रज्वलित । कलि कर एक पुनीत प्रतापा। मानस पुण्य होय नहिं पापा।। - मैं अपनी बात बताऊँ। मैं अपने एक दोस्त के ■ साथ इसी वृन्दावन के गाँव से गुजर रहा था। रास्ते में एक कूँआ पड़ा। लोटा-डोर अपना पास था ही। हम -दोनों ने सोचा कि चलो यहाँ पानी पी लें। कूयें के पास ■गये। इतने में एक औरत अपने घर में से निकली पानी लेने के लिए। कूयें पर पहुँचकर वो मेरे दोस्त को बड़े गौर से देखने लगी। फिर बोली कि यह तो मेरा पति है। कुछ साल पहले मुझे छोड़कर भाग गया था।
मैंने अपने दोस्त से कहा कि चलो यहाँ से, पानी कहीं और पियेंगे। यह तो माया पीछे लग गई। उस औरत ने बहुत दूर तक पीछा किया और बोली कि मैं इसे जाने नहीं दूँगी, यह तो मेरा पति है। मेरा दोस्त बोला कि मैं एक काम नहीं करूँगा। बैठकर खाऊँगा, तू सोच ले । वह बोली कि मैं मेहनत करके खिलाऊँगी, मगर जाने नहीं दूँगी। मैंने अपने दोस्त से कहा कि अब ॥ तू जान और वो जाने। मैं तो चला। तो मतलब ये है कि । माया कब पीछे लग जाय ? कुछ कहा नहीं जा सकता। गुरु के एक-एक शब्द सोच-समझकर याद रखो। बड़ा काम आयेगा। उनके वचन जो साधना करते हैं, उनके लिए भी है; जो साधना नहीं करते उनके लिए भी हैं।
जयगुरुदेव मन्दिर अनोखा मन्दिर
यहाँ मथुरा में इस जयगुरुदेव मन्दिर में बहुत लोग आते हैं। मन्दिर में आने का कोई शल्क नहीं है। जो लोग आते हैं, मन्दिर को देखते हैं और वो अपने भाव से मन्दिर की गोलक में पैसा डालना चाहते हैं। | जब उनसे कहा जाता है कि माँस, मछली, अण्डा खाने वाले तथा शराब पीने वालों का एक नया पैसा भी नहीं लिया जायेगा, तो वो चकित रह जाते हैं। वैसे ठीक है तुम्हारी श्रद्धा है। तुम्हारी बात है। वो कहते हैं कि आपका ही एक स्थान ऐसा है, जहाँ पहली बार ऐसा सुनता हूँ। और जगह जाओ तो वहाँ खींचातानी मची
रहती है। जेब से सब निकलवा लेते हैं। वहाँ तो हम लूट लिये जाते हैं। यहाँ एक नई चीज देखने को मिलती है दूसरों के लफड़े- पचड़े में मत पड़ो तुम लोगों की आदत है कि कहीं जा रहे हो और हल्ला-गुल्ला देखा तो अपना रास्ता छोड़कर वहाँ । चले गये । तुमसे क्या मतलब? तुम अपने रास्ते जाओ।
कानपुर की बात है। एक चोर पकड़ा गया पुलिस ने उसको मार लगाई और पूछा कि तुम्हारा साथी । कहाँ है? एक आदमी वहाँ खड़ा होकर देख रहा था । उसने कह दिया कि यह मेरा साथी है। पुलिस ने उसे भी पकड़ लिया। वह अपनी सफाई देने लगा कि मैं तो इसे जानता भी नहीं। मैं तो जा रहा था, यूँ ही देखने को खड़ा हो गया और इसने मुझे फँसा दिया।
दोनों अन्दर बन्द हो गये तो उस आदमी ने चोर से पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया ? वह बोला कि तुम पैसे वाले हो ।
कहने का मतलब ये है कि अपने रास्ते को, अपने काम से काम रखो। बेकार दूसरों के लफड़े-पचड़े। में मत पड़ो। ये तो दुनिया है, कुछ न कुछ होता ही रहता है। कम मेहनत में ज्यादा लाभ से अब रह गया यह है कि आप कितना समय मेहनत में देते हैं। यह आपके ऊपर निर्भर है, लेकिन जो जितनी मेहनत ज्यादा करता है, उतने में ही उसका काम ! बनेगा। कमी पूरा करना है तो थोड़ी सी ज्यादा मेहनत करो, ज्यादा मेहनत करना चाहिए। महात्मा ज्यादा स । ज्यादा यह सिखाना चाहते हैं कि आप अपने गृहस्थ । आश्रम में रहकर 22 घंटे तो आप घर-गृहस्थी में लगायें लेकिन दो घण्टे आत्मा के लिए, जीवात्मा के लिए, I सुरत के लिए, इस रुह के लिए भी लगा देना चाहिए। इतनी मेहनत जो है, करना चाहिए। और यह मेहनत कम है।
सतयगुरु के अलावा और कोई तुम्हारा सगा नहीं।