बात अयोध्या के सरयू तट पर आयोजित प्रथम सतयुग आगवन साकेत महायज्ञ के समय की है। सरयू की बालू से नदी का किनारा काफी दूर तक पाट दिया गया था। घाट के किनारे आम लोगों की सुविधाजनक पहुँच के दृष्टिगत व्यवस्था बनाई गई थी। कलश लेकर देवियों ने तीन चौथाई नदी का भाग पार कर लिया था। परम पूज्य स्वामी जी ॥ महाराज ने कहा कि बस करो देवियों ! सरयू महारानी की मर्यादा बनी रहने दो, नहीं तो यदि तुमने पूरी नदी पार कर ली तो सरयू महारानी की महिमा घट जायेगी। बस वहीं से लौट आओ।
उसी यज्ञ की एक यादगार साझा करते हुए उस समय के प्रत्यक्षदर्शी एक गुरुभाई ने बताया कि सरयू तट पर आयोजित प्रथम सतयुग आगवन साकेत । महायज्ञ के अवसर पर नदी के किनारे रेतीले मैदान में साफ-सफाई, समतलीकरण और सड़क बनाने की सेवा चल रही थी। लोगों में सेवा की ऐसी होड़ लगी थी कि लोग चादर में, साड़ी के पल्लू में, थाली में, गमछे में या बहनें अपने दुपट्टों में मिट्टी भरकर सड़क बनाने में जुटे थे। जयगुरुदेव नाम की गुंजार हो रही थी। सेवा खूब धड़ल्ले से मन लगाकर । लोग कर रहे थे। परम पूज्य स्वामी जी महाराज स्वयं अपनी देखरेख में सेवा करवा रहे थे।
सेवा का कार्य चल रहा था। धूम मची थी। तभी एक आदमी को चार लोग उठाकर लेकर स्वामी जी की तरफ ले आ रहे थे। वह आदमी बड़ी जोर से चिल्ला रहा था। उसके पेट में भारी दर्द उठ रहा था। वह बहुत परेशान था। दहाड़ें मार कर रो रहा था। बहुत जोर से वह छटपटा रहा था। उसकी रुलाई देखकर सब लोग हैरान थे।
के पास आये तो स्वामी जी ने उसकी हालत देखकर। पूछा कि कहाँ दर्द हो रहा है। उसने कहा कि पेट में बर्दाश्त नहीं हो रहा है। लगता है कि पेट फट जायेगा स्वामी जी दया करिये। उसकी चीख-पुकार की प्रार्थना सुनकर परम पूज्य स्वामी जी ने कहा कि अपने मुँह की थूक अँगुली में लगाकर नाभी पर । रगड़ते हुए जाओ, इसको ले जाओ। अभी थोड़ी देर में आराम मिल जायेगा ।
स्वामी जी के कथनानुसार उस व्यक्ति अपने मुँह की थूक व लार अँगुली में लगाकर नाभि । पर रगड़ना शुरू किया। लेकर आये लोग उसको इस क्रिया को करते-करते वापस ले चले। 100-200 मीटर की दूरी पर गये होंगे तो उसे जमीन पर उतार ! दिया। वह अपने आप ऐसे चलने लगा, जैसे कि उसे कुछ हुआ ही नहीं हो। पहले की दशा और अब की। दशा में जमीन-आसमान का फर्क हो गया। वह पूर्ण स्वस्थ लग रहा था। इस दृश्य को देखकर सेवा कर। रहे सभी सत्संगी भाई-बहन आश्चर्यचकित थे, क्योंकि गुरु महाराज ने जो नुस्खा बताया था, उसने जादू जैसा । काम किया। पेट दर्द से बेहाल सत्संगी भाई का दर्द ! काफूर हो गया।
सच ही तो कहा गया है कि महात्मा फकीरों के नुस्खे अजीबो-गरीब होते हैं। वह दवा का बहाना बनाकर अपने संकल्प की दया डाल देते हैं। उसी । संकल्प से प्रेमियों को लाभ मिलता है।
अक्सर इसी प्रकार के फकीरों के नुस्खे। आम जनमानस में चर्चा के विषय होते हैं, जिनसे उनकी दया-कृपा का आभास मिलता है। ऐसी किसी। बहाने से होने वाली दया को फकीरी दया के अचूक! नुस्खे कहा जाता है। -” भैया जी’
गुरुघन कृपा बूँद झरि झागी, जे भीजहिं ते जन बड़भागी।

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