सोचा कि यदि इसी तरह सब सुरतें जागकर अपने देश वापस लौट गईं तो एक दिन हमारा देश पूरी -तरह खाली हो जायेगा। इन सुरतों को रोकने का कोई उपाय किया जाय । यही सोचकर काल प्रभू ने कर्मों का कानून बनाया। अपनी आवाज उतारकर
ब्रह्मा से लिखने को कहा। केवल आवाज आती रही। उनके आदेश पर लिखते गये। उस समय उपस्थित ऋषियों, मुनियों द्वारा इस विधान का खूब प्रचार कराया गया कि अब कर्मों का कानून बन गया है। कर्म करने का अधिकार सबको है । परन्तु फल | भोगने में परतन्त्र हो । अच्छे-बुरे, पाप-पुण्य, शुभ-अशुभ कर्मों का विधान लागू हो गया। अच्छे कर्मों का फल भोगने के लिए स्वर्ग- बैकुण्ठ बना दिये। बुरे पाप कर्मों का फल भोगने के लिए नर्क बना दिए। उन कर्मों के फल भोगने के बाद चार खान और चौरासी लाख योनियाँ बना दीं। इसी रहट चक्र में सबको भरमा कर, भटका कर रख दिया। मनुष्य शरीर में रहकर जीवात्मायें, जो कर्म करती गईं, उनके परिणामस्वरूप यथा कर्म तथा भोग भोगकर कठिन कारागार में फँस गईं। पहले सन्त गुप्त थे। लेकिन जब जीवात्माओं को काल भगवान कठिन कष्ट देने लगे, तब सन्त प्रकट हो गये। सन्त वाणी में आया है कि:- “दुःख में देखा तुमको जबहीं, दया उठी हम आये तबहीं।” सन्त जीवात्माओं को जगाने का संकल्प लेकर काल की 1 जेल से मुक्त कराने के लिए आते हैं। कहा भी तो गया है कि – “सन्त मही विचरत केहि हेतू। जड़ । जीवन्ह कँह करत सेचतू।” सन्त जीवात्माओं को भव सागर पार करने के लिए आते हैं।
वह जीवों को जगाते हैं, सचेत करते हैं कि जीवन की श्वाँसें अनमोल हैं। यह गिनती में मिली हुई हैं। एक-एक श्वाँस कम हो रही है। इन श्वाँसों को व्यर्थ मत जाने दो। भगवान का सच्चा भजन ॥ करके यहाँ से निकल चलो। अपने सच्चे वतन,
सत्संग करते रहो । जो सुरत- शब्द योग ( नाम मार्ग) का भेद दिया गया है; भजन, सुमिरन, ध्यान प्रतिदिन करते रहो । सत्संग,
महापुरुषों के वचन सदा ही याद करते रहो।| मानव-जीवन अनमोल जीवात्मा को जगाने के लिए मिला है। सुरत- शब्द योग से ही जीवात्मा जगेगी। दूसरा और कोई रास्ता जीवात्मा को जगाने का नहीं है और रास्ते कमकाण्ड के हैं। शुभ-अशुभ कर्म का फल अच्छा-बुरा मिलेगा।
सच्चे घर, असली पिता के पास, जहाँ किसी प्रकार का भी दुःख नहीं, आनन्द ही आनन्द है । मानव-शरीर एकमात्र शरीर है, जिसमें अपने धाम, अपने लोक, असली घर जाने का दरवाजा है। उस दरवाजे का । भेद सन्तों-महात्माओं के अलावा कोई जानता नहीं । बता नहीं सकता। जैसे कहा गया है कि श्वाँसों की । गिनती निश्चित है। इन्हें अनैतिक बुरे कर्मों में लगाओगे तो श्वाँसें जल्दी-जल्दी खर्च हो जायेंगी। आप अल्पायु हो जाओगे। इन्हीं श्वाँसों को चिन्तन, साधन, भजन । में लगाओगे तो एकाग्रता आने पर श्वाँस एकदम रुक जाती हैं और आदमी दीर्घायु हो जाता है।
यह मृत्युलोक है। मृत्यु एक शाश्वत सत्य । है। शरीर का एक निश्चित समय है। पूरा होने पर बदल जायेगा। खाली करना होगा। “मुत्यु” से भय, डर बना रहेगा तो बुरे काम नहीं होंगे। अपने । कल्याण की चिन्ता रहेगी। इसलिए महापुरुषों ने चेताया कि-मौत से डरत रहो दिन रात । मृत्यु से । रात-दिन डरते रहो। तभी भजन कर पाओगे।
कलियुग केवल हरिगुन गाहा, गावत नर पावहिं भव थाहा ।।