में परिपक्व किए जाते थे। दूसरे जन्म के आखीर में नामदान मिलता था, तीसरे जन्म में मुक्ति पद तक की साधना कराई जाती थी। चौथे जन्म में पूरी भक्ति । यानि अपना असली घर सत्तलोक मिलता था ।
जितने भी सन्त आये, सबने पाँच नामों की ॥ उपासना कराई। परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज भी पाँच नाम का नामदान दिया करते थे । अपने निजधाम जाने के पहले सत्संग में यह | कई बार फरमाया कि “यह मार्ग बहुत कठिन है। सन्तों ने जीवों को जगाने के लिए बहुत मेहनत । किया। प्रभु-प्राप्ति का रास्ता सर्व सुलभ बनाया । यह उनकी बहुत बड़ी कृपा थी। वर्तमान में जीवों की कमजोर स्थिति को देखते हुए मालिक की । मौज होने वाली है। वह इस रास्ते को और आसान 1 करना चाहते हैं। आगे अर्थात् भविष्य में आसान कर दिया जायेगा। “
परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने यह भी कहा था कि आगे यह पाँच नाम का नामदान और । यह सत्संग नहीं मिलेगा। आने वाले महात्मा इसको आसान कर देंगे। वर्तमान में जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था, मथुरा की बागडोर सँभाल रहे संस्था प्रमुख पूज्य | पंकज जी महाराज गुरु महाराज के आदेशानुसार नामदान की प्रक्रिया को सरल से सरल करके बता रहे हैं। वह | बराबर कहते हैं कि जो गुरु महाराज से नामदान पाये हैं, वह गुरु महाराज का बताया हुआ भजन करेंगे। नये लोगों के लिए यह सरल किया गया है। वैसे नामदान लेकर नाम, रूप, स्थान, आवाज न याद कर पाना बहुत बड़ा दोष है। नामदान लेकर सुमिरन, ध्यान, भजन नहीं किया तो उस नामदान से क्या फायदा? जब तक नामदान न मिले, जयगुरुदेव, जयगुरुदेव करते रहो। ‘ अगर तुम जयगुरुदेव – जयगुरुदेव जपते रहे तो नामदानी तो आप हो ही गये।
गुरु महाराज अपने द्वारा लिखित रूप से पूज्य पंकज जी महाराज को अपना एकमात्र उत्तराधिकारी बना कर गये हैं। उन्हें नामदान सरल करके बताने का आदेश दे गये हैं। उन्हीं के आदेशानुसार नामदान। को सरल करके नये लोगों को बता रहे हैं। यह भी विदित हो कि जब पाँच नामों के सुमिरन वाली माला की जाती थी तो किसका रूप याद किया। जाता था। बस यही एक आधार है। जयगुरुदेव नाम अनामी महाप्रभु का नाम है। सभी धनी उसी में समाये हैं ।
महाराज के द्वारा दिया जाने वाला नामदान ही असली नामदान है। गुरु आदेश सर्वोपरि है। जो उनकी मौज है, उसी में प्रेमी को राजी रहना चाहिए। वचनों को भूलकर मनमानी काम करना गुरुभक्ति नहीं है । । श्री मान सिंह जी ! आपने पूछा है कि शाकाहारी के प्रचार के समय किसी कारण न पहुँच पाना हमारा ॥ क्या घाटा करेगा? इस बारे में यह कहना है कि शाकाहारी प्रचार का आदेश परम पूज्य बाबा | जयगुरुदेव जी महाराज देकर गये हैं। इसी में हमारा आत्म-कल्याण और देश-दुनिया का परिवर्तन छिपा हुआ है। गुरु वचनों का पालन ही गुरु भक्ति है ।। शाकाहार प्रचार में भाग लेना हमारी शारीरिक सेवा है। महापुण्य बनने का एक जरिया है। जैसे हम । अपना घर-गृहस्थी का काम करते हैं, वैसे ही। शाकाहारी प्रचार के लिए भी अपनी गृहस्थी का अंग मानकर समय निकालना चाहिए और प्रचार में भाग । लेना चाहिए। गुरु की सेवा निरर्थक नहीं जाती। उससे हमारे दैनिक जीवन में आने वाली कर्मजनित तकलीफों में मदद मिलती है। आसन्न संकटों से भी बचाव होता है। भारी कर्मदण्ड शूली को काँटा करके भुगतवा दिए जाते हैं। इसलिए सत्संग में जाने। का और शाकाहार प्रचार का मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। अनिवार्य रूप से समय निकालकर । भाग लेना चाहिए और परमार्थ व भक्ति के लिए। दया का कारण बनाना चाहिए। यह एक प्रकार का सौभाग्य है। मिले अवसर से चूकें नहीं। यही हमारा। परम कर्तव्य है।
ये मुहब्बत की है बात जाहिद, बन्दगी तेरे वश की नहीं है।